नेह-प्रेम, विश्वास-आस के
नव उजियार भरे
अलग-अलग भावों के मैंने
अनगिन दीप धरे
दीप एक
निष्ठाओं का बाला तुलसी के आगे
जोड़ रहा है दिया द्वार का मन के टूटे धागे
जले आस्थाओं के दीपक
घर, आँगन, कमरे
अलग-अलग भावों के मैंने
अनगिन दीप धरे
रख आई
मैं दीप प्रेम का विश्वासों के तट पर
और नेह का दीप जलाया हर सूनी चौखट पर
लौटे गीत कई सुधियों में
फिर भूले-बिसरे
अलग-अलग भावों के मैंने
अनगिन दीप धरे
सपनों के
रंगों सी झिलमिल ये बल्बों की लड़ियाँ
नहा रही हैं आज रोशनी से घर, आँगन, गलियाँ
फुलझरियों सी हँसती खुशियाँ
झर -झर ज्योति झरे।
अलग-अलग भावों के मैंने
अनगिन दीप धरे
- मधु शुक्ला |