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२१. १०. २०१३

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चंदा मामा रहो न अब यों

                

चंदा मामा रहो न अब यों
रहो न अब यों दूर के
मेरी प्याली में रख जाओ
पुए पकाकर बूर के !

बिथा बड़ी है
खड़े खेत में गेहूँ घुन जाते
फ़सलों वाले वार-महीने चुर्रा बन जाते
बित्ते-भर के पीछे फटको बीघा-भरी पटास
दवा-खाद से उपजें भी तो धानों नहीं मिठास
रस भी कहाँ चाख पाता हूँ
पूरा गन्ना चूर के !

चंदा मामा रहो न अब यों
रहो न अब यों दूर के
मेरी प्याली में रख जाओ
पुए पकाकर बूर के !

दो रोटी मिल-बाँट
जीम लें मुन्ना और मुन्नी
लट्टू मिल जाए गुड्डे को गुड़िया को चुन्नी
क्या बतलाऊँ सब कुछ कितना बोझल लगता है
छप्पर से छुटकारा पा लूँ पल-पल लगता है
मेरे सपने कभी नहीं है किसी
सुरग या हूर के !

चंदा मामा रहो न अब यों
रहो न अब यों दूर के
मेरी प्याली में रख जाओ
पुए पकाकर बूर के !

-अश्विनी कुमार विष्णु

इस सप्ताह

गीतों में-

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अश्विनी कुमार विष्णु

अंजुमन में-

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शादाब जफर शादाब

छंदमुक्त में-

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डॉ विजय शिंदे

हाइकु में-

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अभिषेक जैन

पुनर्पाठ में-

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रजनीश कुमार गौड़

पिछले सप्ताह
विजयदशमी के अवसर पर

गीतों में- अश्विनी कुमार विष्णु, ओमप्रकाश सिंह, कल्पना रामानी, कृष्णकुमार तिवारी किशन, कृष्णनंदन मौर्य, जया पाठक, मधु प्रधान, रामेश्वर कांबोज हिमांशु, विनोद पांडेय, सीमा अग्रवाल

दोहों में- ओमप्रकाश नौटियाल, ज्योतिर्मयी पंत, आचार्य संजीव सलिल, सरस्वती माथुर

अंजुमन में- रविशंकर मिश्र रवि,
श्यामल सुमन, सुरेन्द्रपाल वैद्य

अन्य छंदों में- अलीहसन मकरैंडिया (घनाक्षरी), मेघ सिंह मेघ (मुक्तक), ज्योत्सना शर्मा (कुंडलिया)

छंदमुक्त में- ब्रजेश नीरज, सौरभ पांडेय

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प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन¸ कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन

सहयोग :
कल्पना रामानी
 

 

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