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चंदा मामा
रहो न अब यों |
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चंदा मामा
रहो न अब यों
रहो न अब यों दूर के
मेरी प्याली में रख जाओ
पुए पकाकर बूर के !
बिथा बड़ी है
खड़े खेत में गेहूँ घुन जाते
फ़सलों वाले वार-महीने चुर्रा बन जाते
बित्ते-भर के पीछे फटको बीघा-भरी पटास
दवा-खाद से उपजें भी तो धानों नहीं मिठास
रस भी कहाँ चाख पाता हूँ
पूरा गन्ना चूर के !
चंदा मामा रहो न अब यों
रहो न अब यों दूर के
मेरी प्याली में रख जाओ
पुए पकाकर बूर के !
दो रोटी मिल-बाँट
जीम लें मुन्ना और मुन्नी
लट्टू मिल जाए गुड्डे को गुड़िया को चुन्नी
क्या बतलाऊँ सब कुछ कितना बोझल लगता है
छप्पर से छुटकारा पा लूँ पल-पल लगता है
मेरे सपने कभी नहीं है किसी
सुरग या हूर के !
चंदा मामा रहो न अब यों
रहो न अब यों दूर के
मेरी प्याली में रख जाओ
पुए पकाकर बूर के !
-अश्विनी कुमार विष्णु |
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इस सप्ताह
गीतों में-
अंजुमन में-
छंदमुक्त में-
हाइकु में-
पुनर्पाठ में-
पिछले सप्ताह
विजयदशमी के अवसर पर
गीतों में-
अश्विनी कुमार विष्णु,
ओमप्रकाश सिंह,
कल्पना रामानी,
कृष्णकुमार तिवारी किशन,
कृष्णनंदन मौर्य,
जया पाठक,
मधु
प्रधान,
रामेश्वर कांबोज हिमांशु,
विनोद पांडेय,
सीमा
अग्रवाल।
दोहों में-
ओमप्रकाश नौटियाल,
ज्योतिर्मयी पंत,
आचार्य
संजीव सलिल,
सरस्वती माथुर।
अंजुमन में-
रविशंकर मिश्र रवि,
श्यामल सुमन,
सुरेन्द्रपाल वैद्य।
अन्य छंदों में-
अलीहसन मकरैंडिया (घनाक्षरी),
मेघ सिंह मेघ (मुक्तक),
ज्योत्सना शर्मा (कुंडलिया)।
छंदमुक्त में-
ब्रजेश नीरज,
सौरभ पांडेय।
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