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है कहाँ
तनहा सफर |
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मन हँसा
रोया है जब भी
साथ मेरे यों लगा
है कहाँ तन्हा सफ़र मेरा
वक्त की धारा बहे जिस तौर
बहना ही पड़ेगा
जानती हूँ
धूप, बारिश, आँधियाँ तूफ़ान
सहना ही पड़ेगा
मानती हूँ
थक चुकी सी देह ने है किन्तु
जब भी हार मानी
मन लड़ा बढ़ कर समर मेरा
मन चले जिस ओर चल दूँ मैं उधर ही
क्या कभी ये भी
हुआ है
मन लिखे जो मैं पढूँ और वो करूँ भी
माँगी कब
ऐसी दुआ है
फिर भी मुरझाई लगी यदि
धैर्य की धरती कभी
मन ने सींचा हर पहर मेरा
-सीमा अग्रवाल |
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इस सप्ताह
गीतों में-
अंजुमन में-
नई हवा में-
कुंडलिया में-
पुनर्पाठ में-
पिछले सप्ताह
३० सितंबर २०१३ के अंक में
गीतों में-
अश्विनी
कुमार विष्णु,
कृष्ण
कुमार तिवारी किशन,
शशिकांत
गीते,
शशि
पाधा,
शशि
पुरवार,
सुरेन्द्रपाल वैद्य
अंजुमन में-
कल्पना रामानी,
राजेन्द्र पासवान घायल,
राजेश
कुमारी। दोहों में-मंजु
गुप्ता,
सुबोध
कुमार श्रीवास्तव कुंडलिया में-
ज्योतिर्मयी पंत,
रामशंकर
वर्मा छंदों में-
ऋताशेखर
मधु,
चिदानंद
शुक्ल संदोह,
राजेन्द्र स्वर्णकार,
सीमा
अग्रवाल, छंदमुक्त में-
अमरपाल
सिंह,
बृजेश
नीरज,
मंजु
महिमा भटनागर,
मीता
दास,
मोहन
नागर,
रजनी
मोरवाल,
शार्दूला नौगजा,
साहित्य संगम
में बांग्ला से अनूदित-
तापस राय,
रवीन्द्र गुहा, शिबब्रत देवानजी
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