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सब के
मन
हिन्दी का हित हो
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हम बोलें
सब के मन भाये
दीन दलित सब वाणी पायें
धर्म, जाति, सीमाएँ लाँघें
हिन्दी के हित
संकल्पित हों
1
सब भाषाओं
का मंगल हो
हिन्दी सब के साथ प्रबल हो
जन-गंगा के तीरथ-तट पर
संशय रहित सभी
के चित हों
1
कब तक
बोलें उनकी भाषा
दिन-दिन दूनी करें निराशा
अपने आँगन वे क्यों नाचें
लुटे-पिटे हम क्यों
वंचित हों
1
ऐसी सरल
कौन सी वाणी
बहता नीर नदी पहचानी
हे भारत के जन की भाषा
कभी न तेरा स्वर
कंपित हो
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-नंद चतुर्वेदी |