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१९. ८. २०१३

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पाँवों में वृन्दावन बाँधे

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जब तुम दिखे चाँदनी छिटकी
मन मेरा आकाश
हो गया।

तारे-तारे गुँथे कथानक
रात महकने लगी अचानक
जब तुम हँसे
फुलायी बेला
मन मेरा मधुमास
हो गया।

खिला कदम्ब दृष्टि में साधे
पाँवों में वृन्दावन बाँधे
शब्द स्वरों में
घुली बाँसुरी
मूर्च्छित-सा इतिहास
हो गया।

शक्लों के गठबन्धन टूटे
अर्थों के निर्देशन छूटे
जब तुम मिले
भुजा बौरायी
संज्ञा का आभास
हो गया।

रस उद्वेलित वर्तुल-टूटा
देह गेह का साथ न छूटा
जब तुम बिछुड़े
काया जागी
होने का एहसास
हो गया।

--शिवबहादुर सिंह भदौरिया

इस सप्ताह

गीतों में-

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शिव बहादुर सिंह भदौरिया

अंजुमन में-

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मेघ सिंह मेघ

दिशांतर में-

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अनिलप्रभा कुमार

हाइकु में-

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स्वाती भालोटिया

पुनर्पाठ में-

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आरती पाल बघेल

पिछले सप्ताह
१२ अगस्त स्वतंत्रता दिवस विशेषांक में

गीतों में- यही धरती यही धरती, अहंकार सबने पाले हैं, उन्हें शत शत नमन मेरा, उम्मीदें थीं, कुछ लोगों की भली चलाई, कैसी आजादी, कौन कह रहा, गाएँ गौरव-गान देश का, जय भारत माँ, तब आई तिथि पंद्रह अगस्त, देश रसोई, देश हमारा पालक, पंछी जागे गाएँ प्रभाती, भारत माता अभी हमें कुछ..., मातृभू कैसे करें तुझको नमन, मेरा भारत, मेरे प्यारे देश। अंजुमन में- आगे निरंतर, आज हैं आज़ाद हम, खुश होता है दिल, चुप नहीं बैठेंगे हम, साफ लिख दी काल ने, सीमा पर लगती घातों से। छंदमुक्त में- आजादी का जश्न, एक बच्चे का पंद्रह अगस्त, परिवर्तन की आधारशिला, लाल किला, सरहद पर। माहिया में- क्या खौफ दरिंदों से, कैसी आजादी है, भारत को कहते थे, माँ जन्मभूमि सबकी। अन्य छंदों में- लाज तिरंगे की (आल्हा), शुभ दिन-आया-(कुंडलिया)-रघुविन्द्र-यादव-(दोहे)

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प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन¸ कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन

सहयोग :
कल्पना रामानी
   

 

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