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जब तक अपने
स्वप्न रहेंगे |
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जब तक अपने
स्वप्न रहेंगे
स्वप्नों के संघर्ष रहेंगे।
जब तक
फूलों में रंग-खुशबू
जब तक पत्तों में हरियाली
धरती पर जीवन की हलचल
जीवन के होठों
पर लाली
तब तक
स्वप्नों से संघर्षों
वाले अपने छंद रहेंगे।
जब तक अपने स्वप्न रहेंगे
स्वप्नों के संघर्ष रहेंगे।
खेत-खेत
लहराती फसलें
नदी-नदी का बहता पानी
खिलखिलाहटें जब तक जिंदा
और बदन में
भरी जवानी
रचना और
ध्वंस में जारी
युक्त सृजन, स्वच्छंद रहेंगे।
जब तक अपने स्वप्न
रहेंगे
स्वप्नों के संघर्ष रहेंगे।
-कुमार दिनेश प्रियमन |
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इस सप्ताह
गीतों में-
अंजुमन में-
छंदमुक्त में-
कुंडलिया में-
पुनर्पाठ
में-
पिछले सप्ताह
२९ जुलाई २०१३ के अंक में
गीतों में-
अंजुमन में-
छंदमुक्त में-
दोहों में-
पुनर्पाठ
में-
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