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परंपरा |
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परंपरा के
घने वृक्ष को
काट छाँट उजियारा लायें
सीलन भरी रूढ़ियों को अब
वर्तमान की
धूप दिखाएँ
तंत्र मंत्र पाखण्ड बनाते
मकड़ी जैसा ताना बाना
अन्धे विश्वासों के नीचे
दिव्य ज्ञान का गड़ा खजाना
मार कुण्डली उन पर बैठीं
नागिन सी कुछ
दन्त कथाएँ
आन बान की बलिवेदी पर
चढ़ते कितने युवा फ़साने
जंग लगी मोटी साँकल से
ड्योढी पर हैं नियम पुराने
कहीं रिवाजों के घूँघट में
ख़्वाब न घुट घुट
कर मर जाएँ
व्रत उपवास दान पुण्य से
अगले सातों जन्म सँवारें
इसी मिथक के हवन कुंड में
क्यूँ इकलौता जीवन वारें
आओ गढ़ लें नए नियम अब
लागू हों कुछ
नव धाराएँ
-संध्या सिंह |
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इस सप्ताह
गीतों में-
अंजुमन में-
छंदमुक्त में-
दोहों में-
पुनर्पाठ
में-
पिछले सप्ताह
२२ जुलाई २०१३ के अंक में
गीतों में-
अंजुमन में-
छंदमुक्त में-
घनाक्षरी में-
पुनर्पाठ
में-
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