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जीवन |
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जीवन तेरा
जीवन मेरा
इसका कौन चितेरा ?
संघर्षो की बेला है
दुःख और सुख का खेला है
कभी चला हैं साथ तुम्हारे
कभी अकेला मेला है
क्षण
क्षण
हर क्षण
रोया ये मन
बनकर संत कबीरा…
निश्छल जल सा
ये अविरल सा
बहता जाये कलकल...
झरता जाए पल पल
कभी झरनों से
कभी नयनों से
प्राणो की अपनी ही व्यथा है
'झर' जाना जीवन की प्रथा है
किसी के हैं अनुबंध बरस के
कोई क्षणभर ठहरा…
- अमन दलाल |
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इस सप्ताह
गीतों में नई
हवा-
अंजुमन में-
छंदमुक्त में-
हाइकु में-
पुनर्पाठ
में-
पिछले सप्ताह
१ जुलाई २०१३ के चंपा
विशेषांक में
गीतों
में-
खिले पुष्प फिर चंपा के,
चंपा और चमेली कह दूँ.
चंपा का बूटा,
चंपा
:
दो छोटे गीत,
चंपा ने जब,
चंपा
की
कलिका
मुस्काई,
चंपे की डाली,
चंपा के फूल,
डाली चंपा की,
फूल
चंपा के सजाकर,
सोन
चंपा महकती रही रात भर, छंदमुक्त में-आस्था की सुगंध,
चंपा दीवार के पार,
चंपई लम्हे,
आँगन की चंपा,
तेरे आने की खबर से,
चंपा के फूल
(पाँच कविताएँ), मुक्तक में-
कली एक चंपा की,
बोली चंपा इतरा के
जरा,
भीना भीना चंपावन,
ये चंपा के फूल,
तथा अन्य रचनाएँ। | |