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गमलों में
नागफनियाँ |
श
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अब कहाँ वे
फूल
गमलों में
लगी हैं नागफनियाँ!
1
मन हुआ जंगल
सभी कुछ
बेतरह बिखरा
लग रहा चेहरा
नदी का
इन दिनों उतरा
ख़ुशबुओं की अब
कहाँ बातें
सजी हैं नागफनियाँ!
अब कहाँ वे
फूल
गमलों में
लगी हैं नागफनियाँ!
1
हैं बहुत उन्मन
हवाएँ
रोज़ ही मिलता
गाँव का पीपल
सिहरता
काँपता-हिलता
रंग के रिश्ते
हुए फीके
उगी हैं नागफनियाँ!
अब कहाँ वे
फूल
गमलों में
लगी हैं नागफनियाँ!
1
दंश की भाषा
कहीं सब
सीखते-बुनते
दूर तक तम के
चितेरे
शून्य हैं रचते
हाँ, कहीं गहरे
बहुत मन में
बसी हैं नागफनियाँ!
अब कहाँ वे
फूल
गमलों में
लगी हैं नागफनियाँ! - रमेशचंद्र
पंत |
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इस सप्ताह
गीतों में-
अंजुमन में-
दिशांतर में-
दोहों में-
पुनर्पाठ
में-
पिछले सप्ताह
१७-जून-२०१३-के-गंगा-दशहरा-विशेषांक-में
गीतों में-अपना
दुख कब कहती गंगा, किस
तरह गंगा बहेगी,
गंगे
अच्छा हुआ,
गंगा
का तट,
गंगा
नदी नहीं केवल,
गगा
बहुत उदास,
गंगा मइया,
गंगा
हम तेरे अपराधी,
गंगा
है भारत की पूज्या,
जो सदियों से वंदित,
तुम्हें हम क्या दें गंगा माँ,
पतित
पावनी और पानी,
पावनी गंगा,
देखो
गंगा क्या कहती है,
देवनदी तुमको प्रणाम है,
धारा ठिठकी सी है,
नदी
अद्भुत है,
यह
नदी भागीरथी है,
लेकर
आँचल में सुखद प्यार,
विश्वासों का दीप,
वे
दिन भी क्या दिन थे,
सबकी
प्यास बुझाए गंगा,
हिमालय की गोद में। छंदमुक्त
में-
इनार
का विवाह,
गंगा
की धारा,
गंगा
की संध्या-आरती,
गंगा छलावा,
धारा ठिठकी सी है,
फिर
लगा गंगा तट पर मेला,
माँ
गंगे,
शीर्ष तुंग से,
हिमालय की गोद में,
कुछ
क्षणिकाएँ। अंजुमन में- गंगा
नहाते हैं,
तुम
अमृत की धार हो गंगे,
तेरे बारे में गंगा,
देखिये साहब,
नदी
गंगा बड़ी पावन,
भू को चली भागीरथी। कुंडलिया
में- गंगा
का वरदान,
गंगा थी जीवन नदी,
जड़ चेतन की प्यास, अन्य छंदों
में-
जीवन का आधार,
अमृत
तेरा नीर है,
गोमुखी प्रवाह,
दो सवैये | |
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