श
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चित्त में
प्रमोद के प्रसून खिल गये
या कि पीर का हुआ प्रवाह
गीत बन गया
सुखमयी प्रसंग, कारुणिक व्यथाओं के
अंश छंद में पिरो दिये कथाओं के
लेखनी की तूलिका ने
शब्द-चित्र में
भर दिये अनेक रंग कल्पनाओं के
वेदना के
कंटको से हाथ छिल गये
या प्रसन्नता हुई अथाह
गीत बन गया
काव्य-सिंधु के बहाव का सतत् सृजन
भाव के प्रदीप में प्रभा का प्रस्फुटन
हर्ष के हों, या विषाद
के हों गीत हैं
साधना को भक्ति भावना का आचमन
प्राण को
उमंग के प्रतीक मिल गये
या के दग्ध मन दिया कराह
गीत बन गया
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देवल आशीष |