शुभदर्शन
रघुनन्दन वंदन
आँगन कनक-भवन
आरतियाँ गूँजें मंगलगान
ऋषिकुल के मंत्रोच्चार-सा उतरा
आज विहान
कंजनयन
करुणाघन वंदन
मधु उमंग सोहति
निशि-वासर कुसुमित नर्म शिरीष
संग तुम्हें पाकर विभोर हैं जनगण
त्रिभुवन-ईश
सुखवर्षण
दुःखभंजन वंदन
बन्धन बिसराए
करते हैं पिंजरे रामरटन
भक्ति रमी तरु गोद गिलहरी
मानस-पारायण
मनरंजन
भवतारण वंदन !
-- अश्विनी कुमार विष्णु |