श
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माघ-ढले
रंग-लिखे दिन आए
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पंच-पुष्प बाण, सखी
फाग-सखा ने साधे
जप रही हवाएँ हैं
'कान्हा-राधे-राधे’
रास हुए
दिन हैं किरणों-जाए
1
पनघट पर
सूरज ने मंत्र लिखे नेह के
सतरंगी बोल हुए
कनखी के - देह के
फागुन-सँग
बिरछ-गाछ बौराए
1
दिन गुलाल-टेसू के
मंतर हैं बाँच रहे
रितु अनंग देवा की गाथा
हर रात कहे
गली-पार
कोई 'होरी' गाए
1
- कुमार रवीन्द्र
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