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प्रश्न |
श
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पूछ रहे थे पन्ने-पन्ने
प्रश्न, किताबों के
कहाँ गये वह दिन पढ़ने के
लिखने के वह दिन
परियों के जादुई किस्से
प्रेमकथा अनगिन ?
पंख मोर के, पर तितली के
वर्क गुलाबों के
‘लैपटाप’ से ‘नेटवर्क’ तक
सिमटी दिनचर्या
भूल गये तुम कथा-कहानी
कविता-परिचर्या
देर-देर तक सुलझाते हो
जोड़ हिसाबों के
शाम हुए ही किस दुनिया में
तुम खो जाते हो
बिस्तर में पड़ते ही पल भर
में सो जाते हो
तुमने कब से पाल लिये
ये शौक नवाबों के
- डॉ. अजय पाठक |
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