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पुरखों वाला रस्ता |
श
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पुरखों वाला
सीधा-सादा रस्ता हमने छोड़ दिया
सच कहने वाला मन-दर्पण
जान-बूझकर तोड़ दिया
जंगल में
थे जानवरों में मगर जानवर नहीं हुए
नीरजदल की भाँति नीर में रहकर भी अनछुए रहे
अब शहरों में आकर जीवन
जंगलपन से जोड़ दिया
जिसमें जितनी
अक्ल अधिक लालच उतना विकराल हुआ
श्वेत-साफ़ परिधानों का दामन शोणित से लाल हुआ
अर्थ-लाभ हित जीवन- रथ को
हिंसा-पथ पर मोड़ दिया
इन्द्र-धनुष के
झूठे वादों ने हम सब पर राज किया
पीतल पर सोने का पानी हम सबने स्वीकार किया
सच की राह दिखाई जिसने उसका
हाथ मरोड़ दिया
तरुनाई का तन
घायल है अँगड़ाई का मन घायल
मन की निर्मलता का सच बचपन का भोलापन घायल
इन घावों पर छल-फरेब का नीबू-
नमक निचोड़ दिया
काश! सत्य का
बीज उगे फिर मानव-मन की क्यारी में
फिर हो बचपन का भोलापन गुड़ियों की रखवाली में
इसी स्वप्न ने कवि के मन को फिर से
आज झिंझोड़ दिया
- त्रिमोहन तरल |
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इस सप्ताह
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