श
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आकर्षक, आभामय, बना खरे सोने
का
लेकिन मत मोह में बहो मिट्ठू
पिंजरे से दूर ही
रहो मिट्ठू
पिंजरे में झूला है, दाना है-पानी है
आस-पास आठ पहर, राजा है-रानी है
लेकिन सुख-सुविधा के
लालच में पड़े अगर
साँस-साँस जीवन की, गिरवी हो जानी है
अवसर आ जाये तो-स्वाभिमान की खातिर
भूख और प्यास भी सहो मिट्ठू
पिंजरे से दूर ही
रहो मिट्ठू
कोठी में जीने का अलग ढब-सलीका है
सब कुछ मिल सकता है, हाँ! मगर तरीका है
जंगल की षट-ऋतुओं,
मुक्त पवन, खुले गगन,
आम, बेर, महुए के आगे सब फीका है
राम-राम कहने से मुक्ति अगर मिलती है
डालों पर बैठकर कहो मिट्ठू
पिंजरे से दूर ही
रहो मिट्ठू
-मृदुल
शर्मा |