एक आशा की
किरण ले
चढ़ चला दिन बढ़ चला
ओढ़कर
कोहरे की चादर
वृक्ष चाँदी से खड़े
उस पर
सुनहरी धूप चमकी
ओस ने मोती जड़े
शृंगार कर
सारी धरा का
वो गगन में उड़ चला
उम्मीद पर
पाना विजय तो
हो हृदय आकाश जैसा
ताप बिजली वृष्टि पाले
मन में हो
विश्वास ऐसा
हौसलों की नीव पर
अपनी इमारत
गढ़ चला
-नितिन जैन |