जैसे ही ठंड बढ़ी
ठाठ बढ़ी गाँव में
आलू औ शकरकन्द
भुन रहे अलाव में
धान कटा
घर आया
लाई चिउड़ा नया
जीभ को निमंत्रण फिर
ताजा गुड़ दे गया
खेत का भरोसा है
धन के अभाव में
ढूँढ़ी
गुल्लैया है
लड़ुआ है तिलवा है
मूँगफली की पट्टी
का घर में जलवा है
स्वाद रामदाने का
भी रहा प्रभाव में
मन में
सोंधी खुशबू
चूल्हे में आग है
मक्के की रोटी है
सरसों का साग है
कचालू–निमोने भी
आये हैं ताव में
--रविशंकर मिश्र
'रवि' |