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२१. १. २०१३

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 जैसे ही ठंड बढ़ी

जैसे ही ठंड बढ़ी
ठाठ बढ़ी गाँव में
आलू औ शकरकन्द
भुन रहे अलाव में

धान कटा
घर आया
लाई चिउड़ा नया
जीभ को निमंत्रण फिर
ताजा गुड़ दे गया
खेत का भरोसा है
धन के अभाव में

ढूँढ़ी
गुल्लैया है
लड़ुआ है तिलवा है
मूँगफली की पट्टी
का घर में जलवा है
स्वाद रामदाने का
भी रहा प्रभाव में

मन में
सोंधी खुशबू
चूल्हे में आग है
मक्के की रोटी है
सरसों का साग है
कचालू–निमोने भी
आये हैं ताव में

--रविशंकर मिश्र 'रवि'

इस सप्ताह

गीतों में-

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रविशंकर मिश्र 'रवि'

अंजुमन में-

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डॉ. भावना

छंदमुक्त में-

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प्रभा शर्मा

दोहों में-

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रघुविन्द्र यादव

पुनर्पाठ में-

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माया भारती और मैट रीक

खबरदार कविता में-

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ओम प्रकाश तिवारी

पिछले सप्ताह
१४ जनवरी २०१३ के अंक में

गीतों में-
नरेश सक्सेना

अंजुमन में-
रेखा राजवंशी

छंदमुक्त में-
नित्यानंद गायेन

दोहों में-
संध्या सिंह

पुनर्पाठ में-
लालजी वर्मा

खबरदार कविता में-
मौत का नापाक खेल

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प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन¸ कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन

सहयोग :
कल्पना रामानी
 
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