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१४. १. २०१३

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आज साँझ मन टूटे

रह-रह कर
आज साँझ मन टूटे-
काँचों पर गिरी हुई किरणों-सा
बिछला है
1
तनिक देर को छत पर हो आओ
चाँद तुम्हारे घर के पिछवारे
निकला है

प्रश्नों के
अन्तहीन घेरों में
बँध कर भी चुप-चुप ही रह लेना
सारे आकाश के अँधेरों को
अपनी ही पलकों पर
सह लेना
1
आओ, उस मौन को दिशा दे दें
जो अपने होठों पर अलग-अलग
पिघला है

अनजाने
किसी गीत की लय पर
हाथ से मुंडेरों को थपकाना
मुख टिका हथेली पर अनायास
डूब रही पलकों का
झपकाना
1
सारा का सारा चुक जाएगा
अनदेखा करने का ऋण जितना
पिछला है

--नरेश सक्सेना

इस सप्ताह

गीतों में-

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नरेश सक्सेना

अंजुमन में-

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रेखा राजवंशी

छंदमुक्त में-

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नित्यानंद गायेन

दोहों में-

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संध्या सिंह

पुनर्पाठ में-

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लालजी वर्मा

खबरदार कविता में-

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मौत का नापाक खेल

पिछले सप्ताह
७ जनवरी २०१३ के अंक में

गीतों में-
डॉ. कैलाश निगम

अंजुमन में-
राजेन्द्र तिवारी

दिशांतर में-
शिल्पा अग्रवाल

छंदमुक्त में-
शेखर मलिक

पुनर्पाठ में-
नीलम जैन

खबरदार कविता में-
नए वर्ष के नाम

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प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन¸ कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन

सहयोग :
कल्पना रामानी
 
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