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कब तक और
सहें |
श
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जैसे चाहे थे वैसे दिन, अभी
नहीं आए
समझौतों की कसी साँकलें,
कब तक और सहें
अनायास खतरा बन जाती है हर राह-गली
निर्धन के घर सिर्फ धुआँ है, ऐसी हवा चली
आदरणीय हुई नटवरलालों की करतूतें
हर बल से ज्यादा ताकतवर धनपति, बाहुबली
बाल्मीकि, तुलसी की वाणी मिथ्या सिद्ध हुई
चौराहे पर सोच रहे हम
किसका हाथ गहें ?
वर्णाक्षर का ज्ञान नहीं, वे भी अध्यापक हैं
बन्दूकों-कट्टों वाले भी भाग्य-विधायक हैं
कानूनों को नचा सकें जो अपनी उँगली पर
वे ही ज्ञानी, वे ही सक्षम, वे ही लायक हैं
नंगे राजा के जुलूस में हुई मुनादी है,
जैसा कहे,
पालतू तोते होकर वही कहें,
जनता का हक गाया जाता केवल भाषण में
लोकतंत्र फल-फूल रहा केवल विज्ञापन में
रंगभूमि में दिखे युद्धरत पक्ष-विपक्ष मगर
दोनो के हिस्से तय हैं ऐश्वर्य विभाजन में
गूँज रही अन्तःकक्षों में सीख सयानों की
सिद्धान्तों को त्याग,
शक्ति-सत्ता के साथ रहें
आजादी का अर्थ आज केवल मनमानी है,
देशप्रेम, नैतिकता, जनसेवा बेमानी है
मन की धरती के गुण जाने कैसे बदल गये ?
बोते हैं आदर्श, उपजती बेईमानी है।
लोकतंत्र की नदी प्रदूषित भ्रष्टाचारों से
बड़े-बड़े हरिचन्द-युधिष्ठिर
इसमें नित्य बहें
--डॉ. कैलाश निगम |
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इस सप्ताह
गीतों में-
अंजुमन में-
दिशांतर में-
छंदमुक्त
में-
पुनर्पाठ
में-
खबरदार कविता
में-
पिछले सप्ताह
३१-दिसंबर-२०१२-नववर्ष-विशेषांक-में
गीतों में-
कुमार रवीन्द्र,
अवनीश सिंह चौहान,
ओम प्रकाश
तिवारी,
कृष्णनंदन मौर्य,
जयकृष्ण राय
'तुषार',
दिनेश सिंह,
डॉ. दिनेश त्रिपाठी
'शम्स',
पंडित गिरिमोहन
'गुरु',
डॉ. मुकेश, श्रीवास्तव
अनुरागी,
रामशंकर वर्मा,
रेखा राजवंशी,
विजय पुष्पम पाठक,
शशि पाधा,
संजीव सलिल,
सुवर्णा दीक्षित। छंदमुक्त में-अभिनव शुक्ल,
अशोक
गुप्ता,
उर्मिला शुक्ला,
मीरा
ठाकुर,
सुनील श्रीवास्तव। अंजुमन में-
अश्विनी कुमार विष्णु,
कृष्ण कुमार तिवारी
किशन,
प्रदीप कांत, कुंडलियों
में-कल्पना रामानी,
ज्योतिर्मयी पंत,
त्रिलोक सिंह ठकुरेला। दोहों में-
अनिल वर्मा,
रघुविन्द्र यादव,
शरद तैलंग। और खबरदार
कविता में- प्रो. विश्वम्भर शुक्ल
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