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दिन |
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अपने आँगन
कब आया कोई त्योहारी दिन ?
सौदेबाजी करने आते हैं व्यापारी दिन
कागज पर
सर रखकर सोये
जागे कागज पर
हम सूरज के साथी
दिन भर भागे कागज पर
कागज पर बीता अपना तो
हर सरकारी दिन !
उम्मीदों का
बोझ उठाए झुककर हम चलते
जैसे बच्चों पर भारी
उनके अपने बस्ते
उँगली थामें
भूल-भूलैया में गांधारी दिन !
फूलों का मौसम
पेडों पर खुलकर आया है
बरसों से
बिछुडे साथी की यादें लाया है
सूखी घास में
फेंक गया है फिर चिंगारी दिन !
बनवारीलाल 'खामोश' |
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