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राम को तो
आज भी वनवास है |
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झूठ के
सिर ताजपोशी सत्य को संत्रास है
विजय कैसी राम को तो
आज भी वनवास है
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वासना
स्नेहिल कलेवर में उफनती फिर रही है
घर ही में अब दुधमुँहे सपनों की
छाती चिर रही है
हर कहीं पर साधुवेशी
रावणों का राज है
विजय कैसी राम को तो
आज भी वनवास है
1
मानवी
अवधारणाएँ आई. सी. यू. में पड़ी हैं
पाशविकता की भयावह राह
पर संस्कृति खड़ी है
सादगी की साग–रोटी
का बहुत उपहास है
विजय कैसी राम को तो
आज भी वनवास है
1
यह समय
है राम के व्यवहार बाग़ी हो रहे हैं
और दशरथ के प्रणी आचार
दाग़ी हो रहे हैं
पैंतरों से भरत के भी
ठगा सा इतिहास है
विजय कैसी राम को तो
आज भी वनवास है
1
दाल रोटी
के लिये हम रात–दिन सिर धुन रहे हैं
ज़िन्दगी पतझड़ हुई हम पीले-पत्ते
चुन रहे हैं
और देखो छल के आँगन
रोज ही मधुमास है
विजय कैसी राम को तो
आज भी वनवास है
– कृष्ण नन्दन मौर्य |
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इस-सप्ताह
विजयदशमी विशेषांक में
गीतों में-
दोहों में-
छंदमुक्त में-
घनाक्षरी में-
कुंडलिया छंद
में-
अंजुमन में-
पिछले-सप्ताह
नवरात्रि
के अवसर पर माँ को समर्पित
गीतों में-
जयकृष्ण राय तुषार,
पूर्णिमा वत्स,
भावना तिवारी,
रामशंकर वर्मा,
रविशंकर मिश्र रवि,
शशि
पाधा,
शशि
पुरवार,
शशिकांत गीते,
सुरेन्द्रपाल वैद्य।
छंदमुक्त में-
अमित
आनंद,
कविता मालवीय,
मंजुल भटनागर,
संजय कांति सेठ,
सरस्वती
माथुर,
उर्मिला शुक्ला,
स्वाती भालोटिया,
सरस दरबारी।
अंजुमन में-
अर्चना तिवारी,
अश्विनी कुमार विष्णु,
ओमप्रकाश नौटियाल,
कृष्ण कुमार तिवारी किशन,
धर्मेन्द्र कुमार सिंह।
छोटी कविताओं
में-
अंशु मालवीय, आदर्श नितिन, रोहित रुसिया, वीरेन डंगवाल,
हरीशचंद्र पाँडे, नमन, विक्रम सिंह।
दोहों में-
आचार्य संजीव सलिल,
श्रीकृष्ण द्विवेदी 'द्विजेश',
सुबोध श्रीवास्तव। कुंडलिया
में-
कल्पना रामानी,
ज्योत्सना शर्मा।
मुक्तक में-
सीमा
अग्रवाल।
हाइकु में-
पुरुषोत्तम दीवान, सरला
अग्रवाल, रंजना श्रीवास्तव रंजू, जवाहर इंदु, वृंदावन
वर्मा, माधुरी जैन, ईप्सा, कमलेश भट्ट कमल
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