माँ ! नहीं हो तुम
कठिन है मुश्किलों का हल
अब बताओ किसे लाऊँ
फूल, गंगाजल
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सफ़र से पहले दही-गुड़
होंठ पर रखती,
किन्तु घर के स्वाद कड़वे
सिर्फ़ तुम चखती,
राह में रखती हमारी
एक लोटा जल
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साँझ को किस्से सुनाती
सुबह उठ कर गीत गाती ,
सगुन - असगुन पर्व - उत्सव
बिना पोथी के बताती ,
रोज पूजा में चढ़ाती
देवता को फल
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तुम दरकते हुए
रिश्तों की नदी पर पुल बनाती
मौसमों का रुख समय से पूर्व
माँ तुम भाँप जाती ,
तुम्हीं से था माँ ! पिता के
बाजुओं में बल
मौन में तुम गीत चिड़ियों का
अंधेरे में दिया हो ,
माँ हमारे गीत का स्वर
और गज़ल का काफ़िया हो ,
आज भी यादें तुम्हारी
हैं मेरा संबल
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--जयकृष्ण राय तुषार |