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हम बहुत गेय है,
गा लो !
हम बन्धन में बँधे छन्द है
मात्राओं में पूरे हैं,
यति, गति, स्वर, लय, ताल सधे हैं
हम बिन गीत अधूरे हैं
हम श्रेय-प्रेय हैं,
पालो !
हम अवकाश कल्पनाओं के
शब्दों के नटनागर है,
धरती जैसे हम यथार्थ हैं,
अर्था के हम सागर हैं.
हम अपरिमेय हैं,
छा लो !
जीवन की रसवती धार के,
हाँ, हम ही तो उद्गम हैं,
शोषण-पोषण समर-भूमि में,
शेष बचे हम ही नम है,
हम अनुपमेय हैं,
भालो !
--पं. रामप्रकाश अनुरागी |