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८. १०. २०१२

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हम बहुत गेय हैं

 

हम बहुत गेय है,
गा लो !

हम बन्धन में बँधे छन्द है
मात्राओं में पूरे हैं,
यति, गति, स्वर, लय, ताल सधे हैं
हम बिन गीत अधूरे हैं
हम श्रेय-प्रेय हैं,
पालो !

हम अवकाश कल्पनाओं के
शब्दों के नटनागर है,
धरती जैसे हम यथार्थ हैं,
अर्था के हम सागर हैं.
हम अपरिमेय हैं,
छा लो !

जीवन की रसवती धार के,
हाँ, हम ही तो उद्गम हैं,
शोषण-पोषण समर-भूमि में,
शेष बचे हम ही नम है,
हम अनुपमेय हैं,
भालो !

--पं. रामप्रकाश अनुरागी

इस सप्ताह

गीतों में-

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पं. रामप्रकाश अनुरागी

अंजुमन में-

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शिवकुमार पराग

छंदमुक्त में-

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शेख मोहम्मद कल्याण

मुक्तक में-

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रामदरश मिश्र

पुनर्पाठ में-

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हंसराज सिंह वर्मा हंसकल्प

पिछले सप्ताह
१ अक्तूबर २०१२ के अंक में

गीतों में-
अजय पाठक

अंजुमन में-
सुवर्णा दीक्षित

दिशांतर में-
विनोद तिवारी

छोटी कविताओं में-
विजय नाहटा

पुनर्पाठ में-
रूपहंस हबीब

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प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन¸ कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन

सहयोग : दीपिका जोशी

 
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