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क्या मिला सचमुच शिखर ?
मिल गए
ऐश्वर्य कितने अनगिनत
पञ्च तारा जिंदगी में हो गया विस्मृत विगत
घर गली फिर गाँव फिर
छूटा नगर
कर्म पथ
पर आ नहीं पाई विफलता
मान आदर पदक लाई सब सफलता
मित्र बिछड़े चल न पाए साथ अपने
इस डगर
एकला
चलता रहा शुभ लक्ष्य पाया
चक्र किन्तु नियति ने ऐसा घुमाया
ले गई किस छोर पे जाने उठाकर
ये लहर
उम्र के
इस मोड़ पर नहिं साथ कोई
सोचता हूँ फसल ये कैसी है बोई
खो गया वो रास्ता, जाता था
जो मेरे शहर
--दिगंबर नासवा |