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अपना समय
लिखा |
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जब जब खुद को
लिखने बैठे अपना समय लिखा
अच्छा नहीं लिखा लेकिन, जो सच था
अभय लिखा
बड़े बड़े प्रस्थान
चले पर थोड़ी दूर चले
चलते रहे विमर्श मगर निष्कर्ष नही निकले
हम क्या अभी आधुनिक होंगे सोच विचारों में
बन्द किताबों से बाहर हम
निकलें तो पहले
ऐसे लोग
सभी समयों में होते आये हैं
जिनने घने तिमिर को भी सूरज का
उदय लिखा
आधा वर्तमान
खोया है त्रासद यादों में
संवादों के बदले खबरें मिली विवादों में
सिर्फ मंच पर नहीं हर जगह अभिनय ही अभिनय
जाने कितना कपट छिपा है
नेक इरादों में
फिर भी
कुछ संवेदन बाकी हैं अब भी जिनसे
हर आँसू की परिभाषा में हमने
हृदय लिखा
विज्ञापन में
बसने वालों का क्या कहना है
भूखी आत्माओं को सब ऐसे ही सहना है
कबिरा तुम तो लिये लुकाठी निकल पड़े घर से
हमको तो बाजारों में आजीवन
रहना है
जीवित तो
रहना था जैसे भी होता आखिर
इसीलिए अपनी पराजयों को भी
विजय लिखा
--कृष्ण बिहारीलाल पांडेय |
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इस सप्ताह
गीतों में-
अंजुमन में-
छंदमुक्त में-
क्षणिकाओं में-
पुनर्पाठ में-
पिछले सप्ताह
१० सितंबर २०१२ के अंक में
गीतों में-
कल्पना रामानी,
आचार्य संजीव सलिल,
आभा खरे,
किशोर
पारीख,
परमेश्वर फुँकवाल,
पीयूष पराशर,
रामशंकर
वर्मा,
रामेशचंद्र शर्मा आरसी,
शरद
तैलंग,
शशि
पाधा
छंदमुक्त में-
अमर सिंह रमण,
ज्योति
खरे,
नूतन
व्यास,
पूर्णिमा वत्स,
सरस्वती
माथुर दोहों
में- ज्योत्सना शर्मा,
सुबोध
श्रीवास्तव,
डॉ.
महेन्द्र प्रताप पाण्डेय 'नंद'
कुंडलिया में-
कल्पना
रामानी,
काका
हाथरसी,
त्रिलोक
सिंह ठकुरेला
अंजुमन में-
कृष्ण
कुमार तिवारी किशन,
सीमा
अग्रवाल
छोटी कविताओं में-
अर्चना
ठाकुर, मीरा
ठाकुर
घनाक्षरी-में--राजेन्द्र-स्वर्णकार,-शैलजा
सक्सेना
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