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हम जड़ों से
कट गए |
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हम जड़ों से
कट गए
नेह के
बाताश की हमने कलाई मोड़ दी
प्यार वाली छाँव हमने गाँव में ही छोड़ दी
मन लगा महसूसने हम दो धड़ों
में
बँट गए
हम जड़ों से
कट गए
डोर रिश्तों की
नए वातावरण-सी हो गई
थामने वाली जमीं हमसे कहीं पर
खो गई
भीड़ की खाताबही में कर्ज से
हम
पट गए
हम जड़ों से
कट गए
खोखले आदर्श
के हमने मुकुट पहने
बेचकर खुद सभ्यता के कीमती
गहने
कद भले चाहे बड़े हों पर वजन
में
घट गए
हम जड़ों से
कट गए
--विनय मिश्र |
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इस सप्ताह
गीतों में-
अंजुमन में-
छंदमुक्त में-
छोटी कविताओं
में-
पुनर्पाठ में-
पिछले सप्ताह
१३
अगस्त २०१२ के अंक में
गीतों में-
राम सनेही लाल शर्मा यायावर,
अश्विनी कुमार विष्णु,
कल्पना रामानी,
किशोर
पारीख,
गिरिराजशरण अग्रवाल,
डॉ. जगदीश
व्योम,
जयकृष्ण राय
'तुषार',
परमानंद जाडिया,
डॉ. महेश दिवाकर,
राकेश खंडेलवाल,
रोहित रुसिया,
वीरेश कुमार अरोरा,
शशि
पाधा,
श्रीकांत मिश्र
'कान्त', अंजुमन में-
कुंवर प्रताप चन्द्र 'आजाद',
दिगंबर
नासवा,
सतपाल
ख्याल,
सुवर्णा
दीक्षित,
अम्बरीश
श्रीवास्तव,
धर्मेन्द्र कुमार सिंह
दोहों में-
ज्योत्सना शर्मा,
ज्योतिर्मयी पंत,
सुबोध श्रीवास्तव। छंदमुक्त में-
ब्रजेश
कुमार शुक्ल,
सरस्वती माथुर,
संजय सिंह 'भारतीय' घनाक्षरी में-
मेघश्याम मेघ,
अंबरीष श्रीवास्तव छोटी कविताओं
में-
इंदुबाला सिंह, विश्वंभर शुक्ल,
त्रिलोक सिंह ठकुरेला
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