प्रत्येक सोमवार को प्रकाशित
 पत्र व्यवहार का पता

अभिव्यक्ति तुक-कोश

१६. ७. २०१२

अंजुमन उपहार काव्य संगम गीत गौरव ग्राम गौरवग्रंथ दोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति
भक्ति सागर हाइकु अभिव्यक्ति हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर नवगीत की पाठशाला

मन तो भीगे कपड़े सा
11

सूरज फिर
से हुआ लाल है

मन तो भीगे कपड़े सा
सुधियों की अर्गनी टँगा

चलती हैं
तेज हवाएँ
ले-लेकर तेजाबीपन,
रह-रह कर
घटता बढ़ता
साँसों पर दर्द का वजन
हल्का-हल्का सा था मैं
जाने किस बोझ से दबा

जीने का
मिट गया वहम
रोने को मिल गया जनम
सुग्गे सा
पालता रहा
पिंजरे में प्यार का भरम
पाँखों से झर गए सपन
आँखों से कर गए दगा

डूब-डूब कर
लिख गए
खत लगते इश्तहार से
खुशियाँ गुम
हो गई कहीं
दर्द हो गए फरार से
आवाजें खोखली यहाँ
सुनता हूँ मैं ठगा-ठगा
1
-डॉ. सुरेश

इस सप्ताह

गीतों में-

अंजुमन में-

दिशांतर में-

क्षणिकाओं में-

पुनर्पाठ में-

पिछले सप्ताह
जुलाई २०१२ के अंक में

गीतों में-

अंजुमन में-

छंदमुक्त में-

हाइकु में-

पुनर्पाठ में-

अन्य पुराने अंक

अंजुमनउपहार काव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंकसंकलनहाइकु
अभिव्यक्तिहास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतरनवगीत की पाठशाला

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इस में प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है।

अपने विचार — पढ़ें  लिखें

Google
Loading

प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन¸ कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन

सहयोग : दीपिका जोशी

 
 
१ २ ३ ४ ५ ६ ७ ८ ९ ०