प्रत्येक सोमवार को प्रकाशित
 पत्र व्यवहार का पता

अभिव्यक्ति तुक-कोश

. ७. २०१२

अंजुमन उपहार काव्य संगम गीत गौरव ग्राम गौरवग्रंथ दोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति
भक्ति सागर हाइकु अभिव्यक्ति हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर नवगीत की पाठशाला

नाव का दर्द
11

सूरज फिर
से हुआ लाल है

मैं नैया
मेरी क़िस्मत में
लिक्खे हैं दो कूल-किनारे
पार उतारूँ मैं सबको मुझको ना कोई
पार उतारे

जीवन की
संगिनी बनी है बहती नदिया - बहता पानी
क्या मज़ाल जो धार गह सकूँ
संग-संग बह लूँ मनमानी

कोई इस तट बना खेवइया
उस तट कोई
खड़ा पुकारे

उल्टी-सीधी
लहरों से लड़ने-भिड़ने की नियति मिल गई
सख्त थपेड़ों की मारों से
कनपटियों की चूल हिल गई

औघट घाट लगे तो जुटकर
छेद गिन रहे
लाकड़हारे

मेरी राह
धरें पानी पर उठती-गिरती वे पतवारें
जिनको ख़ुद का पता नहीं
रह-रहकर इधर-उधर मुँह मारें

गैरों के हाथों कठपुतली-सा
जो नाचें उठ
भिनसारे
1
-दिनेश सिंह

इस सप्ताह

गीतों में-

अंजुमन में-

छंदमुक्त में-

हाइकु में-

पुनर्पाठ में-

पिछले सप्ताह
जुलाई २०१२ के अंक में

गीतों में-

अंजुमन में-

छंदमुक्त में-

मुक्तक में-

पुनर्पाठ में-

अन्य पुराने अंक

अंजुमनउपहार काव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंकसंकलनहाइकु
अभिव्यक्तिहास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतरनवगीत की पाठशाला

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इस में प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है।

अपने विचार — पढ़ें  लिखें

Google
Loading

प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन¸ कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन

सहयोग : दीपिका जोशी

 
 
१ २ ३ ४ ५ ६ ७ ८ ९ ०