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. ७. २०१२

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आँगन और देहरी
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सूरज फिर
से हुआ लाल है

आँगन और देहरी के झगड़े
अब तो आम हुए
सारे घर को हमें मनाते
सुबहो-शाम हुए
1
तेज हवा के
झोंके पल में घर को बाँट गये
दरवाजों को दीमक-घुन गेहूँ-सा चाट गये
सूख गया आँगन का बिरवा,
हम बेनाम हुए
1
कोई कहता
है कल से ही पानी नहीं मिला
आपस-के-झगड़े-में-कब-से-चूल्हा-नहीं-जला
छोटी - छोटी बातें लेकर
हम बदनाम हुए
1
पैसों के
झगड़े में कोई इतना रूठ गया
नाते रिश्ते दूर हुए और साथी छूट गया
मंदिर की चौखट से ही
बनवासी राम हुए
1
-सुरेन्द्र शर्मा

इस सप्ताह

गीतों में-

अंजुमन में-

छंदमुक्त में-

मुक्तक में-

पुनर्पाठ में-

पिछले सप्ताह
जून २०१२ के अंक में

गीतों में-
रामशंकर वर्मा

अंजुमन में-
चंद्रसेन विराट

हास्य व्यंग्य में-
क्षत्रपाल वर्मा

दोहों में-
सीमा अग्रवाल

पुनर्पाठ में-
डॉ. गोपाल बाबू शर्मा

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प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन¸ कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन

सहयोग : दीपिका जोशी

 
 
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