|
तुम बिन
11 |
सूरज फिर
से हुआ लाल है
|
तुम बिन
दिन कुछ ऐसे बीते
सुबह हुई
सूरज उदास था
और धूप की आँखें नम थीं
गुमसुम खोये रहे पखेरू
पेड़ों पर भी
हलचल कम थी
सूनी रही गैल मधुवन की
उर पनघट प्रेमिल-घट रीते
तुम बिन
दिन कुछ ऐसे बीते
मौन
रहीं सागर की लहरें
गीत विरह माँझी ने गाए
उन्मन साँझ क्षितिज से उतरी
गिरि-शिखरों पर कदम बढ़ाये
विकल रहा
मन पथिक अहर्निश
स्मृतियों का मधु-रस पीते
तुम बिन
दिन कुछ ऐसे बीते
-रामशंकर वर्मा |
|
इस
सप्ताह
गीतों में-
अंजुमन में-
हास्य
व्यंग्य में-
दोहों में-
पुनर्पाठ
में-
पिछले सप्ताह
हरसिंगार विशेषांक में
गीतों में-
जगदीश-व्योम,
अनिल-वर्मा,
अश्विनी
कुमार-विष्णु,
कुमार-रवीन्द्र,
कल्पना
रामानी,
जयकृष्ण राय
तुषार,
धर्मेन्द्र
कुमार सिंह सज्जन,
मधु प्रधान,
परमेश्वर फुंकवाल,
भारतेन्दु
मिश्र,
महेन्द्र
भटनागर,
रचना
श्रीवास्तव,
राजेन्द्र गौतम,
राधेश्याम
बंधु,
शंभु
शरण मंडल,
रामशंकर
वर्मा,
शलभ श्रीराम
सिंह,
शशि पाधा,
शारदा मोंगा,
श्रीकान्त मिश्र 'कान्त',
संजीव सलिल,
क्षेत्रपाल
शर्मा,
त्रिलोक
सिंह ठकुरेला
छंदमुक्त में-
अनंत मिश्र,
अरुणा सक्सेना,
मधु
संधु,
रमा
जयशर्मा,
राजेश कुमार झा
हाइकु में-
शशिकांत गीते, राजेन्द्र
कांडपाल, इंदुबाला सिंह, नवल किशोर नवल, सरस्वती
माथुर,
भावना सक्सैना शशि पुरवार और सुशीला शिवराण।
दोहों में-
यतीन्द्रनाथ राही
अन्य पुराने अंक
| |