सूरज फिर
से हुआ लाल है
|
सारी रात
महक बिखराकर हरसिंगार झरे
1
सहमी दूब
बाँस गुमसुम है, कोंपल डरी-डरी
बूढ़े बरगद की आँखों में
खामोशी पसरी
1
बैठा दिए गए जाने क्यों
गंधों पर पहरे
1
वीरानापन
और बढ़ गया, जंगल देह हुई
हरिणी की चंचल-चितवन में
भय की छुईमुई
1
टोने की ज़द से अब आखिर
बाहर कौन करे
1
सघन गंध
फैलाने वाला, व्याकुल है महुआ
त्रिपिटक बाँच रहा सदियों से
पीपल मौन हुआ
1
चीवर पाने की आशा में
कितने युग ठहरे
1
डा० जगदीश व्योम |