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गंगा |
सूरज फिर
से हुआ लाल है
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माँ कहती थी -
गंगा नदी नहीं
वह तो है सबकी मइया
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'वही पालती-वही तारती
सुख-दुख की भी वह है साखी
वह अक्षय है -
उसने सूरज-चंदा की पत राखी'
माँ कहती थी-
'बबुआ मानो
देस हमारा सोनचिरइया'
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'हिमगिरि पर जो देवा रहता
उसके जटा-मुकुट से निकसी
वही सींचती हमें नेह से
जब तपती है देह अगिन-सी’
माँ कहती थी-
‘कामधेनु वह
जो है देवताओं की गइया’
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गंगाजल से माँ करती थी
शुद्ध-पवित्र रोज़ आँगन को
कहती थी - 'यह जल है पावन
इससे सींचो अपने मन को'
माँ कहती थी -
‘गंगातट पर ही
रहता है सृष्टि-रचइया'
-कुमार रवीन्द्र |
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इस
सप्ताह
गंगा को समर्पित कुछ और रचनाएँ
गीतों में-
दोहों में-
छंदमुक्त में
मुक्तक में-
हाइकु में-
पिछले सप्ताह
गंगा दशहरे के अवसर पर
गीतों में-
अश्विनी कुमार विष्णु,
उमाकांत मालवीय,
किशोर
कुमार पारीख,
कुमार रवीन्द्र,
रमेशचंद्र
शर्मा 'आरसी',
राजेन्द्र
गौतम, शरद सिंह,
शशिकांत
गीते,
शशि पाधा,
शांति सुमन
गौरवग्राम में-
सुमित्रानंदन पंत,
सूर्यकांत
त्रिपाठी निराला,
माखनलाल
चतुर्वेदी,
भारतेन्दु
हरिश्चंद्र,
नरेन्द्र
शर्मा
अंजुमन में-
कृष्ण कुमार
तिवारी 'किशन',
गौतम सचदेव,
विश्वंभर
शुक्ल,
विष्णु
विराट, श्यामल सुमन
छंदमुक्त में-
परवीन
शाकिर,
पूर्णिमा
वत्स,
वीरेन
डंगवाल,
दिनेश चमोला,
सिद्धेश्वर
सिंह,
कुंडलिया में-
कल्पना रामानी,
त्रिलोक सिंह ठकुरेला
हाइकु में-
स्वाती भालोटिया, शशि पुरवार, भावना
सक्सैना, संध्या सिंह, सुशीला शिवराण, अनिता कपूर, कल्पना
बहुगुणा,
सरस्वती माथुर, सतपाल ख्याल
क्षणिकाओं में-
रचना श्रीवास्तव,
उर्मिला
शुक्ला
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