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. ६. २०१२

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गंगा

सूरज फिर
से हुआ लाल है

माँ कहती थी -
गंगा नदी नहीं
वह तो है सबकी मइया
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'वही पालती-वही तारती
सुख-दुख की भी वह है साखी
वह अक्षय है -
उसने सूरज-चंदा की पत राखी'

माँ कहती थी-
'बबुआ मानो
देस हमारा सोनचिरइया'
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'हिमगिरि पर जो देवा रहता
उसके जटा-मुकुट से निकसी
वही सींचती हमें नेह से
जब तपती है देह अगिन-सी’

माँ कहती थी-
‘कामधेनु वह
जो है देवताओं की गइया’
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गंगाजल से माँ करती थी
शुद्ध-पवित्र रोज़ आँगन को
कहती थी - 'यह जल है पावन
इससे सींचो अपने मन को'

माँ कहती थी -
‘गंगातट पर ही
रहता है सृष्टि-रचइया'

-कुमार रवीन्द्र

इस सप्ताह
गंगा को समर्पित कुछ और रचनाएँ

गीतों में-

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कुमार रवीन्द्र

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अनिल कुमार मिश्र

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ओम प्रकाश नौटियाल

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रामशंकर वर्मा

दोहों में-

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कल्पना रामानी

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मधु प्रधान

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सुबोध श्रीवास्तव

छंदमुक्त में

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मंजुल भटनागर

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राजेश कुमार झा

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विक्रम सिंह

मुक्तक में-

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अरुणा सक्सेना

हाइकु में-

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राजेन्द्र कांडपाल

पिछले सप्ताह
गंगा दशहरे के अवसर पर

गीतों में- अश्विनी कुमार विष्णु, उमाकांत मालवीय, किशोर कुमार पारीख, कुमार रवीन्द्र, रमेशचंद्र शर्मा 'आरसी', राजेन्द्र गौतम, शरद सिंह, शशिकांत गीते, शशि पाधा, शांति सुमन

गौरवग्राम में- सुमित्रानंदन पंत, सूर्यकांत त्रिपाठी निराला, माखनलाल चतुर्वेदी, भारतेन्दु हरिश्चंद्र, नरेन्द्र शर्मा

अंजुमन में- कृष्ण कुमार तिवारी 'किशन', गौतम सचदेव, विश्वंभर शुक्ल, विष्णु विराट, श्यामल सुमन

छंदमुक्त में- परवीन शाकिर, पूर्णिमा वत्स, वीरेन डंगवाल, दिनेश चमोला, सिद्धेश्वर सिंह,

कुंडलिया में- कल्पना रामानी, त्रिलोक सिंह ठकुरेला

हाइकु में- स्वाती भालोटिया, शशि पुरवार, भावना सक्सैना, संध्या सिंह, सुशीला शिवराण, अनिता कपूर, कल्पना बहुगुणा, सरस्वती माथुर, सतपाल ख्याल

क्षणिकाओं में- रचना श्रीवास्तव, उर्मिला शुक्ला

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प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन¸ कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन

सहयोग : दीपिका जोशी

 
 
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