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1गाँव |
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पहले जैसा
प्रेम- गंध से भरा
अभी भी गाँव।
रिश्ते नातों में
अब तक बाकी है
अपनापन
बरस रहे
हर ड्योढ़ी - आँगन
सुख - सावन
भरी धूप में
सुखमय लगती
पीपल छाँव।
सुख दुःख मे
सम्मिलित होकर
जीते जीवन
मानवता ही
सबसे बढ़कर
जीवन - धन
बिछा न पायी
मलिन कुटिलता
अपने दाँव।
-त्रिलोक सिंह ठकुरेला
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इस
सप्ताह
नवगीत की
पाठशाला से-
अंजुमन में-
छंदमुक्त में-
दोहों में-
पुनर्पाठ में-
पिछले सप्ताह
१६ अप्रैल २०१२ के अंक में
नवगीत-की
पाठशाला से-
दिशांतर में-
कुंडलिया में-
अंजुमन में-
पुनर्पाठ में-
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