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1सुरज
देवता आए |
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सुरज देवता आये
जंगल-घाट सिहाये
धूप आरती हुई
गंध के पर्व हुए दिन
ओस-भिगोई
बिरछ-गाछ की साँसें कमसिन
हरी घास ने
इन्द्रधनुष हैं उमग बिछाये
बर्फ पिघलने लगी
नदी-झरने भी लौटे
हटा दिये किरणों ने
अपने धुंध-मुखौटे
भौरों ने हैं
गीत फागुनी दिन-भर गाये
पीली चूनर ओढ़
हवा ने रंग बिखेरे
व्यापे घर-घर
सरसों के रँग-रँगे उजेरे
ऋतु फगुनाई
बूढ़े बरगद भी बौराये
कुमार रवीन्द्र
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इस
सप्ताह
नवगीत की
पाठशाला से-
अंजुमन में-
दिशांतर में-
कुंडलिया में-
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पिछले सप्ताह
९ अप्रैल २०१२ के अंक में
गीतों में-
अंजुमन में-
नई हवा में-
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पुनर्पाठ में-
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