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पत्र व्यवहार का पता

  ९. ४. २०१२

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1भ्रमण पथ

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खुलीं पलकें भोर की
पग बढ़ चले लय में हमारे
हरित कुसुमित क्यारियाँ हैं
इस किनारे-
उस किनारे

अरुणिमा प्राची में छाई
धूप शबनम में नहाई।
चाँद तारे कह गए हम
जा रहे हैं दो विदाई
कान में कहती हवाएँ
नज़र कर लो
सब नज़ारे

खिलीं कलियाँ हुई आहट
तितलियों की सुगबुगाहट
पुष्प पल्लव औ लताओं
के लबों पर मुस्कुराहट
सृष्टि के साथी सभी ये
सजग स्वागत
में हमारे

भ्रमण-पथ लंबा अकेला
लिपटकर कदमों से बोला
तेज़ कर लो चाल अपनी
प्राणवायु का है रेला
हर दिशा संगीतमय है
मूक सृष्टि
के इशारे

- कल्पना रामानी

इस सप्ताह

गीतों में-

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कल्पना रामानी

अंजुमन में-

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हरेराम समीप

नई हवा में-

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मयंक कुमार वैद्य

ताँका में-

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रामेश्वर कांबोज हिमांशु

पुनर्पाठ में-

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यश मालवीय

पिछले सप्ताह
अप्रैल २०१२ के अंक में

गीतों में-

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योगेन्द्र वर्मा व्योम

अंजुमन में-

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कुमार अनिल

छंदमुक्त में-

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सुशीला शिवराण

मुक्तक में-

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गिरिराजशरण अग्रवाल

पुनर्पाठ में-

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क्षणिकाएँ - - -

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प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन¸ कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन

सहयोग : दीपिका जोशी

 
   
 
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