|
1भ्रमण
पथ |
111111111111 |
खुलीं पलकें भोर
की
पग बढ़ चले लय में हमारे
हरित कुसुमित क्यारियाँ हैं
इस किनारे-
उस किनारे
अरुणिमा प्राची में छाई
धूप शबनम में नहाई।
चाँद तारे कह गए हम
जा रहे हैं दो विदाई
कान में कहती हवाएँ
नज़र कर लो
सब नज़ारे
खिलीं कलियाँ हुई आहट
तितलियों की सुगबुगाहट
पुष्प पल्लव औ लताओं
के लबों पर मुस्कुराहट
सृष्टि के साथी सभी ये
सजग स्वागत
में हमारे
भ्रमण-पथ लंबा अकेला
लिपटकर कदमों से बोला
तेज़ कर लो चाल अपनी
प्राणवायु का है रेला
हर दिशा संगीतमय है
मूक सृष्टि
के इशारे
- कल्पना रामानी
| |
|