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  २६. ३. २०१२

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1पतझड़ की पगलाई धूप

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पतझड़ की पगलाई धूप

भोर भई
जो आँखें मींचे,
तकिये को सिरहाने खींचे,
लोट गई
इक बार पीठ पर
ले लम्बी जम्हाई धूप,
अनमन सी अलसाई धूप

पोंछ रात
का बिखरा काजल,
सूरज नीचे दबा था आँचल,
खींच अलग हो
दबे पैर से
देह आँचल सरकाई धूप,
यौवन ज्यों सुलगाई धूप

फुदक-फुदक
खेले आँगन भर,
खाने-खाने एक पाँव पर,
पत्ती-पत्ती
आँख मिचौली,
बचपन सी बौराई धूप
खिल-खिल खिलती आई धूप।

- मानोशी चैटर्जी

इस सप्ताह

गीतों में-
मानोशी चैटर्जी

अंजुमन में-
प्राण शर्मा

छंदमुक्त में-
श्रीनिवास श्रीकांत

दिशांतर में-
कृष्ण कन्हैया

पुनर्पाठ में-
भगवत शरण अग्रवाल

पिछले सप्ताह
१९ मार्च २०१२ के अंक में

मातृ दिवस के अवसर पर- गीतों में- कुमार रवीन्द्र, अवनीश सिंह चौहान, यश मालवीय, कौशलेन्द्रछंदमुक्त में- राजेश जोशी, रेखा राजवंशी, शबनम शर्मा, सुषम बेदी। हाइकु में- कल्पना रामानी, भावना कुंअर, भावना सक्सेना, डॉ. रमा द्विवेदी। क्षणिकाओं में-सीमा

इसके अतिरिक्त अंजुमन में- राजेन्द्र पासवान घायल, छंदमुक्त में- अश्विन गांधी गौरवग्रंथ में- जानकी मंगल, पुनर्पाठ में- अनूप भार्गव

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प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन¸ कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन

सहयोग : दीपिका जोशी

 
   
 
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