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1पतझड़
की पगलाई धूप |
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पतझड़
की पगलाई धूप
भोर भई
जो आँखें मींचे,
तकिये को सिरहाने खींचे,
लोट गई
इक बार पीठ पर
ले लम्बी जम्हाई धूप,
अनमन सी अलसाई धूप
पोंछ रात
का बिखरा काजल,
सूरज नीचे दबा था आँचल,
खींच अलग हो
दबे पैर से
देह आँचल सरकाई धूप,
यौवन ज्यों सुलगाई धूप
फुदक-फुदक
खेले आँगन भर,
खाने-खाने एक पाँव पर,
पत्ती-पत्ती
आँख मिचौली,
बचपन सी बौराई धूप
खिल-खिल खिलती आई धूप।
- मानोशी चैटर्जी
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इस
सप्ताह
पिछले सप्ताह
१९ मार्च २०१२ के अंक में
मातृ दिवस के
अवसर पर- गीतों में-
कुमार
रवीन्द्र,
अवनीश सिंह चौहान,
यश मालवीय,
कौशलेन्द्र।
छंदमुक्त में-
राजेश जोशी,
रेखा राजवंशी,
शबनम
शर्मा,
सुषम बेदी। हाइकु में-
कल्पना रामानी,
भावना कुंअर,
भावना सक्सेना,
डॉ. रमा द्विवेदी। क्षणिकाओं में-सीमा।
इसके अतिरिक्त
अंजुमन में-
राजेन्द्र पासवान घायल,
छंदमुक्त में- अश्विन गांधी
गौरवग्रंथ में- जानकी मंगल,
पुनर्पाठ में- अनूप भार्गव
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