सूरज फिर
से हुआ लाल है
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मेरी नींद चुराने वाले,
जा तुझको भी नींद न आए
पूनम वाला चाँद तुझे भी सारी-सारी
रात जगाए
तुझे अकेले
तन से अपने, बड़ी लगे अपनी ही शय्या
चित्र रचे वह जिसमें करता, चीरहरण हो कृष्ण-कन्हैया
बार-बार आँचल सम्भालते, तू रह-रह
मन में झुँझलाए
कभी घटा-सी घिरे नयन में,
कभी-कभी फागुन बौराए
बरबस तेरी
दृष्टि चुरा लें, कंगनी से कपोत के जोड़े
पहले तो तोड़े गुलाब तू, फिर उसकी पंखुडियाँ तोड़े
होठ थकें ‘हाँ’ कहने में भी, जब कोई
आवाज़ लगाए
चुभ-चुभ जाए सुई हाथ में, धागा
उलझ-उलझ रह जाए
बेसुध बैठ कहीं
धरती पर, तू हस्ताक्षर करे किसी के
नए-नए संबोधन सोचे, डरी-डरी पहली पाती के
जिय बिनु देह नदी बिनु वारी, तेरा
रोम-रोम दुहराए
ईश्वर करे हृदय में तेरे, कभी कोई
सपना अँकुराए
--भारत भूषण |