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मौन को
उत्सव बनाओ |
सूरज फिर
से हुआ लाल है
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मौन को
उत्सव बनाओ
दर्द को जीना सिखाओ
अब किसी भी
जंग से
डरती नहीं है जिन्दगी
आँधियों से जो लड़ा है
वही तो हिमगिरि बना है
धूप में जो भी तपा है
गुलमुहर सा
वह खिला है
दर्द को दर्पन बनाओ
धैर्य को जीना सिखाओ
अब किसी भी
घुटन में
घुटती नहीं है जिन्दगी
जिन्दगी जो हल चलाती
वही तो मधुमास लाती
मरुथलों की
गली में भी
तृप्ति के है गीत गाती
प्यास को बादल बनाओ
प्यार को खिलना सिखओ
अब किसी भी
हार से
डरती नहीं है जिन्दगी
स्वेद की जब नदी गाती
प्यार की फसलें उगाती
एक मुठ्ठी
धान से भी
झोपड़ी है गुनगुनाती
हाथ को हथियार कर लो
पाँव को रपफतार कर लो
अब किसी भी
जुल्म से
झुकती नहीं है जिन्दगी
राधेश्याम बन्धु |
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इस सप्ताह
गीतों में-
अंजुमन में-
छंदमुक्त
में-
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पुनर्पाठ
में-
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१४ नवंबर २०११
के अंक
में
मैथिलीशरण गुप्त,
अशोक
अंजुम,
अशोक
चक्रधर,
अश्विन गांधी,
डॉ.
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अज्ञात,
प्रो.
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बिहारी,
क्षेत्रपाल शर्मा,
गुलज़ार,
चंद्रबली शर्मा,
छवि
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मंजु
महिमा भटनागर,
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डॉ.
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सावित्री तिवारी 'आज़मी',
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