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२१. ११. २०११

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मौन को उत्सव बनाओ

सूरज फिर
से हुआ लाल है

मौन को उत्सव बनाओ
दर्द को जीना सिखाओ
अब किसी भी
जंग से
डरती नहीं है जिन्दगी

आँधियों से जो लड़ा है
वही तो हिमगिरि बना है
धूप में जो भी तपा है
गुलमुहर सा
वह खिला है
दर्द को दर्पन बनाओ
धैर्य को जीना सिखाओ
अब किसी भी
घुटन में
घुटती नहीं है जिन्दगी

जिन्दगी जो हल चलाती
वही तो मधुमास लाती
मरुथलों की
गली में भी
तृप्ति के है गीत गाती
प्यास को बादल बनाओ
प्यार को खिलना सिखओ
अब किसी भी
हार से
डरती नहीं है जिन्दगी

स्वेद की जब नदी गाती
प्यार की फसलें उगाती
एक मुठ्ठी
धान से भी
झोपड़ी है गुनगुनाती
हाथ को हथियार कर लो
पाँव को रपफतार कर लो
अब किसी भी
जुल्म से
झुकती नहीं है जिन्दगी

राधेश्याम बन्धु

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संपादन¸ कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन

सहयोग : दीपिका जोशी

 
   
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