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फूल पर बैठा
हुआ भँवरा |
सूरज फिर
से हुआ लाल है
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फूल पर
बैठा हुआ भँवरा
शाख पर गाती हुई चिड़िया
घास पर बैठी हुई तितली
और तितली देखती गुड़िया
हमें
कितने
दिन हुए देखे !
घाट के
नीचे झुके दो पेड़
धार पर ठहरी हुई दो आँख
सतह से उठता हुआ बादल
और रह-रह फड़कती दो पाँख
हमें कितने
दिन हुए देखे !
बाँह-सी
फैली हुई राहें
गोद-सा वह धूल का संसार
धूल पर उभरे हुए दो पाँव
और उन पर बिछा हरसिंगार
हमें कितने
दिन हुए देखे !
घुप अँधेरे
में दिए की लौ
दिए जल पर भी जलाते लोग
रोशनी के साथ बहती नदी
और उससे नाव का संयोग
हमें कितने
दिन हुए देखे !
- गुलाब सिंह |
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इस सप्ताह
गीतों में-
अंजुमन में-
छंदमुक्त
में-
दोहों में-
पुनर्पाठ
में-
पिछले सप्ताह
२४ अक्तूबर २०११
के अंक
में
गीतों में-
कुमार
रवीन्द्र,
अश्विनी कुमार विष्णु,
आकुल,
डॉ. उषा गोस्वामी,
कल्पना रामानी,
कृष्णकुमार तिवारी,
गीता पंडित,
तुकाराम वर्मा,
नियति वर्मा,
नूतन
व्यास,
भावना सक्सेना,
मीना
अग्रवाल,
मुक्ता पाठक,
यश
मालवीय,
योगेन्द्रनाथ शर्मा अरुण,
रवि
शंकर मिश्र 'रवि',
शशि
पाधा,
श्रीकांत मिश्र
'कांत',
सुरेश पण्डा,
त्रिलोक सिंह ठकुरेला। अंजुमन में-
अनूप
भार्गव,
आर.सी.शर्मा आरसी,
कुमार अनिल,
श्रीकांत सक्सेना,
सिया सचदेव। छंदमुक्त
में-
बालेन्दु शर्मा दाधीच,
रेखा मैत्रा,
वीणा विज उदित। हाइकु में-
अरविंद चौहान,
शशि पुरवार,
मीरा ठाकुर। क्षणिकाओं
में-
अरुणा सक्सेना
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