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यात्राएँ
गंगा सागर की
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सूरज फिर
से हुआ लाल है
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यात्राएँ गंगा सागर
की
नावें पत्थर की
ऐसी बदल गई है
आबो हवा शहर भर की
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चोंच पसारे चिड़िया बीने
आँगन आँगन दाना
स्वाती भर सीपियाँ देखतीं
बादल आना जाना
सूरज छूने की इच्छाएँ
कैंदें हैं घर की
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अक्षर अक्षर स्याही आँजे
रंग पुते चेहरे
हमें मिली हैं चीखें
सुनने वाले सब बहरे
बाहर से मुसकानें लगतीं
चोटें भीतर की
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- विजय किशोर मानव |
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