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मैंने हलो कहा |
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घंटी बजी
और फोन पर मैंने हलो कहा
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वही-वही
बिल्कुल पहले जैसे ही
धुली-धुली
उधर हँसी तुम
और इधर
बगुले की पाँख खुली
बँधी झील में सहसा
पूरनमासी गई नहा
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होठों पर होंगी
अब भी कुछ बातें
रूकी-रूकी
हर सवाल पर
बड़ी-बड़ी दो आँखें
झुकी-झुकी
बस ऐसे ही बतियाने का
अपना ढंग रहा
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बड़ी उम्र ने
खींची ही होंगी
कुछ रेखाएँ
बाल सफेद
हुए होंगे
शायद दाएँ-बाएँ
फिर भी होगा वही चेहरा
था जो कभी रहा
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सुनो कहाँ
पूरा हो पाता है
अपना होना
खाली ही रह जाता
है मन का
कोई कोना
बहुत अकेला कर ही जाता है
कोई लम्हा
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- सत्यनारायण
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