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आज समझ आया है
होना |
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आज समझ आया है होना
कितनी झंझा
कितने गर्जन
विचलित कर देते हैं
तन को
पर यौवन का रंग निखरता
छू सपनों में
श्यामल घन को
नित नूतन होता जाता है
धरती से आकाश सलोना
आज समझ आया है होना
बिखरी बिखरी सी
अलकों में
अनकहनी बातों का डेरा
अर्ध निमीलित
पलकें भारी
प्रत्याशा का रैन बसेरा
शंकाओं ने चुपके चुपके
घेर लिया है, मन का कोना
रह रहकर आता है रोना
आज समझ आया है होना
- सुरेश कुमार पंडा | |
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