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गुजरती रही जिन्दगी
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गुजरती रही
जिन्दगी धीरे-धीरे
न सुर ही सधे
राग आसावरी के,
न चलना हुआ
साथ लय बावरी के,
भटकती हुई
दर्द की घाटियों में
कि बजती रही
बाँसुरी धीरे-धीरे
अँधेरों से जिसके
लिये वैर ठाना,
उजालों में उसने
न जाना, न माना,
अगर टूटती
शोर सुनता जमाना,
बिखरती रही
चाँदनी धीरे-धीरे
कहाते थे जो
आचमन-अर्ध्य वाले,
सिराते रहे
नेह के सब हवाले,
लिये पीठ पर
शव, दिये, फूल, अक्षत
कि बहती रही
इक नदी धीरे-धीरे
-अमृत खरे | |
इस सप्ताह
गीतों में-
अंजुमन में-
छंदमुक्त में-
लंबी कविता
में-
पुनर्पाठ में-
गीतों में-
आचार्य संजीव सलिल,
चंदन,
किशोर काबरा,
कुमार
रवीन्द्र,
पं. गिरिमोहन गुरु,
ठाकुर प्रसाद सिंह,
प्रेम शंकर रघुवंशी,
भारतेंदु मिश्र,
योगेश समदर्शी,
डॉ. राजेन्द्र गौतम
और
शास्त्री नित्यगोपाल कटारे।
छंदमुक्त में-
कुंजन आचार्य,
कविता गौड़,
केदारनाथ सिंह,
नवीन
चतुर्वेदी,
डॉ. निर्मल शर्मा,
फाल्गुनी,
डॉ. रूपचंद्र शास्त्री मयंक,
संजय चतुर्वेदी,
साधना राय।
ग़ज़लों में-
राजगोपाल सिंह,
सजीवन मयंक,
सिद्धनाथ सिंह
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