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  २३. ५. २०११

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दूषित हुआ विधान
1

 

बीस सदी के पार हुए हम
फिर भी है अनजान
इस पृथ्‍वी ने पहन लिये क्‍यों
विष डूबे परिधान
1
धुआँ मन्‍त्र सा उगल रही है
चिमनी पीकर आग
भटक गया है चौराहे पर
प्राणवायु का राग
रही खाँसती ऋतुएँ, मौसम
दमा करे हलकान
1
पेड़ कटे क्‍या, सपने टूटे
जंगल हो गये रेत
विकृतियों से बंजर हो गये
बाग, बावड़ी, खेत
उजड़ गयी बस्‍ती पंखों की
थकने लगी उड़ान
1
धीरे-धीरे बादल, अम्‍बर
सबने खींचे हाथ
सूख गया अनुराग नदी का
जलचर हुये अनाथ
चढ़े घाम तो गलियारों की
सूखे हलक जबान
1
परजीवी बन चुका प्रदूषण
कैसे पाँव पड़े
शहरों से तो फिर भी अच्‍छे
आदिम गाँव बड़े
दोष नहीं कुछ कंकरीट का
दूषित हुआ विधान
1
- निर्मल शुक्ल

इस सप्ताह

गीतों में-

छंदमुक्त में-

विज्ञान कविताओं में-

जापानी छंद ताँका में-

पुनर्पाठ में-

अनुभूति का २० जून का अंक टेसू या पलाश विशेषांक होगा। इस अंक के लिये हर विधा में पद्य रचनाओं का स्वागत है। रचनाएँ हमें १० जून से पहले मिल जानी चाहिये। पता इसी पृष्ठ पर ऊपर है।

पिछले सप्ताह
१६ मई २०११ के अंक में

गीतों में-
शीलेन्द्र सिंह चौहान

अंजुमन में-
प्रवीण पंडित

छंदमुक्त में-
नियति वर्मा

लंबी कविता में-
कुमार रवीन्द्र

पुनर्पाठ में-
सुभाष चौधरी

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प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन¸ कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन

सहयोग : दीपिका जोशी

 
 
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