|
1
कुटी चली परदेश कमाने1 |
|
कुटी चली
परदेश कमाने
घर के बैल बिकाने
चमक दमक में भूल गई है
अपने ताने-बाने
1
राड-बल्ब के आगे फीके
दीपक के उजियारे
काट रहे हैं फुटपाथों पर
अपने दिन बेचारे
कोलतार सड़कों पर चिडि़या
ढूँढ़ रही है दानें
1
एक-एक रोटी के बदले
सौ-सौ धक्के खाये
किन्तु सुबह के भूले पंछी
लौट नहीं घर आये
काली तुलसी कैक्टस दल के
बैठी है पैताने
1
गोदामों के लिए बहाया
अपना खून पसीना
तन पर चमड़ी बची न बाकी
ऐसा भी क्या जीना
छाँव बरगदी राजनगर में
आई गाँव बसाने
1
- शीलेन्द्र सिंह चौहान | |
|