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क्षण अकेला
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क्षण अकेला भीड़ में,
कटता नहीं काटे।
हर घड़ी उपलब्धियों की,
यहाँ चर्चाएँ।
योजनाएँ लाभ की,
अपनी व्यवस्थाएँ
रात दिन चलती निरंतर
अर्थ मुद्राएँ
देखता पर कौन,
मेरे हाथ के घाटे?
पूछते सब हाल,
मन का राज लेने को
मर्ज पैदाकर,
दवा का दर्द देने को
डोलते सब फाँस,
अपनी निकलवाने को।
देखता पर कौन
मेरे पाँव के काँटे?
- बाबूराम शुक्ल | |
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