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पत्र व्यवहार का पता

  १८. ४. २०११

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सड़कों पर

  सड़कों पर हो रही सभाएँ
राजा को-
धुन रही व्यथाएँ

प्रजा
कष्ट में चुप बैठी थी
शासक की किस्मत ऐंठी थी
पीड़ा जब सिर चढ़कर बोली
राजतंत्र की हुई ठिठोली
अखबारों-
में छपी कथाएँ

दुनिया भर
में आग लग गई
हर हिटलर की वाट लग गई
सहनशीलता थक कर टूटी
प्रजातंत्र की चिटकी बूटी
दुनिया को-
मथ रही हवाएँ

जाने कहाँ
समय ले जाए
बिगड़े कौन, कौन बन जाए
तिकड़म राजनीति की चलती
सड़कों पर बंदूक टहलती
शासक की-
नौकर सेनाएँ

--पूर्णिमा वर्मन
इस सप्ताह

नवगीत की कार्यशाला से-

अंजुमन में-

छंदमुक्त में-

 क्षणिकाओं में-

पुनर्पाठ में-

पिछले सप्ताह
११ अप्रैल २०११ के अंक में

अंजुमन में-
मनोज श्रीवास्तव

छंदमुक्त में-
निर्मल गुप्ता

गौरवग्राम में भावभीनी श्रद्धाजलि के साथ-
जानकीवल्लभ शास्त्री

हाइकु में-
सुभाष नीरव

पुनर्पाठ में-
श्वेता गोस्वामी

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प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन¸ कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन

सहयोग : दीपिका जोशी

 
 
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