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चलो उजाला
ढूँढें |
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चलो उजाला ढूँढें
काली रातों में
सागर हो या
तपता मरुथल प्यास
बुझाए पानी
मन का दर्द दबाए मन में है
जीवन सैलानी
नहीं सांत्वना मिलती
इन हालातों में
चलो उजाला ढूँढें
काली रातों में
अपने इस अंधेर
नगर का शासक
चौपट राजा
टके सेर की भाजी बिकती
टके सेर का खाजा
न्यायालय अन्याय
दिखाते खातों में
चलो उजाला ढूँढें
काली रातों में - माधव
कौशिक | |
इस सप्ताह
गीतों में-
अंजुमन में-
छंदमुक्त
में-
मुक्तक में-
पुनर्पाठ
में-
पिछले सप्ताह
२१
मार्च २०११ के अंक में
छंदमुक्त में-
कमला
निखुर्पा,
कुँवर नारायण,
केदारनाथ अग्रवाल,
पूर्णिमा वर्मन,
परमेन्द्र सिंह,
मंजु
महिमा भटनागर,
रामेश्वर कांबोज हिमांशु,
शकुंत माथुर,
श्रीकांत मिश्र
कांत,
सुधीर
मोता,
सुदर्शन
वशिष्ठ,
आकुल
हाइकु में-
कृष्णकुमार यादव,
नागेश भोजने,
मंजु मिश्रा,
मीरा
ठाकुर,
डॉ. रमा द्विवेदी,
डॉ.
सुधा गुप्ता
क्षणिकाओं में-
मानोशी चैटर्जी,
रचना श्रीवास्तव,
सुषमा
भंडारी
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