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शीत ऋतु के
कुनकुने दोहे |
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बालकनी में
उलझकर,
टँगी कुनकुनी धूप
छत ने अभी उछाल दी, फटक फटक कर सूप
1
किरन ओढ़कर सो
गई, कंबल पाँव
समेट
ऋतु के नटखट
छोकरे, खेल
रहे आखेट
1
सोया एक मचान
पर, ऋतु मुट्ठी
में बाँध
सपनों में खाता
रहा, पीले
चावल राँध
1
मोटी सौर लपेटकर,
ठिठुरे सारी
रात
फटी गोदड़ी कह
गई, सर्दी
की औकात
1
ठंड धूप में
सो रही,
छत पर पाँव पसार
छाँव मुँडेरी पर
टँगी, ठिठुरे भर
सिसकार
1
जेब गरम कमरा
गरम, गरम सभी माहौल
गर्मी चढ़ी दिमाग
पर, ठंड लागाती
धौल
1
वे शोले चिनगी
हुए, हुए राख
के ढेर
ये जुगनू सूरज
हुए, धन्य समय का फेर
- यतीन्द्रनाथ राही
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इस सप्ताह
दोहों में-
बालगीतों में-
अंजुमन में-
दिशांतर में-
पुनर्पाठ में-
पिछले सप्ताह
२४ जनवरी २०११
गणतंत्र दिवस विशेषांक में
गीतों में-भगवतीचरण वर्मा,
देवमणि
पांडेय,
श्रीकृष्ण सरल,
डॉ. सूरजपाल
सिंह,
गोपालकृष्ण
भट्ट आकुल,
पवन चंदन। दोहों में-
राम निवास
मानव,
गोपालदास
नीरज,
राजेश चेतन,
राजेन्द्र वर्मा। अंजुमन में-
नीरज गोस्वामी,
महेश
मूलचंदानी,
दिगंबर
नासवा। छंदमुक्त में-
कमलेश कुमार
दीवान,
नागार्जुन,
संजीव सलिल,
हिमांशु कुकरेती। मुक्तक में-
श्रवण
राही, चिराग जैन, रामेश्वर कांबोज हिमांशु, राजेन्द्र
सोलंकी। पुनर्पाठ में-संकलन -
मेरा भारत
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