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स्मृतियों के अलाव

सर्द सुबह

ठंडे बर्फ के मैदानों के नीचे
यादों की बहती एक नदी
कहाँ आ गया हूँ मैं
लगता है
बीत चुकी एक सदी
झील की जमी सतह पर
फिसलते इठलाते नृत्यरत
नव यौवन, नव युगल
नीचे बहता उष्ण जल
मीन सी तैरती स्मृतियाँ
और मेरा जीवित बीता कल

झील के उस पार
देखता हूँ एक मणि-वन
हिमवर्षा के बाद बना
जैसे शीशे का उपवन
शाखाओं ने पहनी
उँगलियों पर हीरा कणी
स्फटिक सी जमी धरा
जिसमें प्रतिबिम्बित जगमगाती
बीती एक घड़ी

जमे झरने के नीचे
बहता जल कल-कल
इन तरंगों में जाग उठा
फिर मेरा बीता कल
उठा भावनाओं का बहाव
और फिर
जल उठा मन:स्तल पर
बचपन की लोहड़ी का अलाव

सोचता हूँ उठ के
बीते कल से नाता फिर जोड़ लूँ
और नहीं तो
फायर प्लेस की जलती ज्वाला में
तिल रेवड़ी डाल
लोहड़ी का सकुन तो कर लूँ

- सुमन कुमार घई
१ दिसंबर २०१९

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